रविवार, 13 जून 2010

व्यंग्य

फैशन की राजनीति

-रत्ना वर्मा

मुहल्ले की फैशन-परस्त महिलाएं राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के लिए चर्चा करने जमा हुई थीं।
कुछ महिलाएं बार-बार अपने हाथ ऊपर उठा कर अपनी जड़ाऊ चूडिय़ां दिखा रही थीं। जिन महिलाओं ने कीमती हार पहन रखे थे उनकी साड़ी के पल्ले बार-बार नीचे गिर रहे थे। अधिक सिर हिलाने वाली महिलाओं ने हीरों वाले झुमके पहन रखे थे। सभी राजनीति में आना चाहती थी। लेकिन आदत से लाचार थीं।
मिसेस जरीवाला ने जो कीमती हार पहन रखा है वह उनके पति की रिश्वत की कमाई का है। ऐसे गहनों पर हम थूकती भी नहीं... इससे अच्छा है हमारा नकली हार... क्यों मिसेस भट्टी?
मिसेस भट्टी ने अपनी नयी साड़ी की ओर देखा और बोली, 'हां, मैं भी जानती हूं। दो नम्बर की कमाई से अभी उन्होंने साढ़े चार लाख का फ्लेट खरीदा है। सरकारी नौकरी में है... दोनों हाथों से बटोर रहे हैं। मैं कहती हूं यह सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं है... तस्कर पैसे भले ही कमा ले लेकिन सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं कमा सकता, अब भट्टी साहब को देखो... दिन भर साईट पर कड़ी धूप में घूमते हैं। अपनी मेहनत से ठेकेदारी करते हैं लेकिन जब तक साहबों को बीस परसेन्ट नहीं देते उनके बिल पास नहीं होते हैं... मैं तो कहती हूं हमारे ही पैसों से रौब दिखाने वाली इन महिलाओं को शर्म कब आएगी?'
दूसरे छोर पर जो महिलाएं बैठी थीं उनकी बातें निहायत पारिवारिक और घरेलू थीं।
'अरे कुछ सुना है भट्टी फेमिली के बारे में? उसकी जवान लड़की कहीं भाग गई है। भई क्या जमाना आ गया है। मिसेस भट्टी से पूछो तो कहती है कि अपने मामा के घर गई है। ये कैसा मामा है बहन?'
'लड़कियां अपने मां बाप से ही सीखती है। क्या तुम नहीं जानती कि भट्टी साहब का क्या लफड़ा चला था मुहल्ले में? और मिसेस भट्टी भी कम नहीं है।'
महिलाओं ने ठहाका लगाया।
तभी एक थुल-थुल देहवानी महिला, जो किसी राजनीति पार्टी की सदस्य थीं, सबका ध्यान आकर्षित करती हुई बोली, 'बहनो, अब हम दहेज और सामाजिक कु-प्रथाओं के मसलों से बोर होने लगी हैं। हमारी बहनों को चाहिए कि वे अब राजनीति में आ जाए। महिलाओं को टाइम पास के लिए राजनीति से अच्छी पहल और कोई नहीं हो सकती। मैं बहनों के विचार जानना चाहती हूं।'
थोड़ी देर इधर उधर देखने के बाद वह फिर बोली, 'बहनों हमने महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ कई जुलूस निकाले हैं... जाने कितनी बार अपनी सासों के पुलले जलाए हैं लेकिन आज भी हमारी बहुए जल रही है। अब तो हमें भी इन घिसे-पिटे आंदोलनों से बोरियत होने लगी है... इसलिए अब राजनीति में आना हर महिला का पहला कर्तव्य है।'
उनकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि मिसेस जगन्नाथ बोली, 'बहनों, हमने हर आंदोलन को एक फैशन के रूप में लिया है और इसीलिए हमारे आंदोलनों में महिलाओं की रूचि है। जब भी कोई जुलूस निकलता है हमारे बहने सज-धज कर आती है। इसलिए मैं भी चाहती हूं कि राजनीति को भी हम फैशन के रूप में ही ले। इससे महिलाओं में रूचि बनी रहेगी। क्या आप मेरी राय से सहमत है?'
एक महिला ने कहा, 'सहमत तो हैं लेकिन पहले हमें बताईए कि राजनीति में महिलाओं का कौन सा फैशन चलेगा? राजनीति साड़ी, जेवर या बाल नहीं है कि हम इसके प्रदर्शन से लोगों को अपनी ओर खींच सके।'
दूसरी महिला ने कहा, 'राजनीति में फैशन तो चलता ही है। व्ही.पी.सिंह की फर वाली टोपी, बच्चन जी की शॉल डालने की स्टाइल भी एक फैशन ही है जिसके कारण लोग उनकी तरफ देखते हैं। हम जानना चाहती है कि हमारी बहने राजनीति में कौन से फैशन पर जोर देंगी।'
तभी मिसेस जरीवाला बोली, 'हम उमा भारती के तरह भगवे वस्त्र नहीं पहनेंगी और ना ही राजमाता की तरफ सफेद मोटी साड़ी। यदि आप चाहती है कि हम राजनीति में आएं तो पहले यह करें कि हम कौन से वस्त्र पहने जिससे महिलाओं का राजनीति में आकर्षण बना रहे।'
एक महिला ने कहा, 'वैयन्ती माला बाली भी महिला है... देखिए जब भी लोक-सभा में जाती है कितनी सजी-संवरी लगती है। कौन कहेगा कि उनकी उम्र पचास के आसपास चल रही है। मेरा विचार है कि राजनीति में आने वाली महिलाएं को अपनी उम्र दबाने का पूरा प्रयास पहले करना चाहिए...मारग्रेट अल्वा की तरह हम राजनीति में नहीं जाना चाहती।'
कोने में जो महिला बहुत देर से चुप बैठी थी, बोली, 'आप ठीक ही कहती है। हम महिलाओं को अपने लंबे बालों पर गर्व है। इसलिए राजनीति में महिलाओं के लंबे बालों के फैशन को पुर्नर्जीवित किया जाए और राजनीति की जया बेनो को नकार दिया जाए। घाड़े पूछ जैसी चोटियों को राजनीति में कोई स्थान न दिया जाये।'
कुछ बॉब कट वाली अधेड़ महिलाओं ने इसका विरोध किया और अपना तर्क दिया कि राजनीति का हेयर स्टाइल से कोई संबंध नहीं है इसलिए ऐसी कोई शर्त राजनीति में आने वाली महिलाओं के लिए न रखी जाए वर्ना हम सब इस बैठक में बाय-काट कर देंगी।
तभी एक बाब कट वाली महिला जो शायद बहुत गुस्सेल थी बोली, 'उठो बहनों, यहां सब पुरानी छत्तीसगढ़ी महिलाएं हैं जो राजनीति को अपने ढंग से फैशन-बद्ध चाहती है। हमें ऐसी महिलाओं के बीच रहकर अपना अपमान नहीं करवाना है।'
थुल-थुली महिला ने उन्हें समझाने की कोशिश की और बोली, 'राजनीति संघर्ष का दूसरा नाम है। हम महिलाओं को इन मसलों को आपस में बैठकर हल करने के लिए ही हम यहां जमा हुई है। बाबाकट वाली बहनों से निवेदन है कि वे इस सभा में शांति बनाए रखें।'
लेकिन बॉब-कट वाली महिलाएं इतनी जिद्दी निकलीं कि वे बैठे से उठ कर चली गई।
चर्चा आगे बढ़ी और एक महिला जो काफी बुजुर्ग थी, जरीवाली बनारसी साड़ी को सीधा करती हुई खड़ी हुई और बोली, 'बहनों, आजकल राजनीति में नंगाई चल रही है। मैं स्लीव-लेस राजनीति की पक्षधर नहीं हूं। जब पहली बार तारकेश्वरी सिन्हा ने यह फैशन राजनीति में चलाया उस समय मैं बच्चों की मां नहीं बनी थी। लेकिन एक भारतीय संस्कार में जीने वाली महिला होने के कारण मुझे यह अच्छा नहीं लगा था। मेरा विचार है कि महिलाओं की इस स्लीव-लेस राजनीति को समाप्त किया जाए और यह प्रस्ताव पारित किया जाए कि जो महिला राजनीति में रहेगी उसे लंबी बांह वाला ब्लाउज ही अपनाना पड़ेगा। राजनीति में महिलाओं की नंगी बाहों से मुझे घृणा है।'
एक स्लीवलेस महिला विरोध में खड़ी हुई और बोली, 'हम भारतीय महिलाएं मन के सौंदर्य पर विश्वास करती है। यह तन माटी का चोला है। यही हमारे पूर्वजों की मान्यता है इसलिए आज स्लीव-लेस की बात उठाना उचित नहीं है। मेरा पूरा परिवार स्लीव-लेस है लेकिन हम भारतीय संस्कारों में जीने वाले लोग हैं। यदि आपने यह शर्त रखी तो मैं राजनीति में नहीं आ सकती और मेरे साथ कई महिलाएं हैं जो इस शर्त के कारण जिंदगी में कभी भी राजनीति में नहीं आ सकेंगी।Ó
एक जोशीला स्लीवलेस वाली महिला तुनक कर बोली, 'उठो बहनों, यहां सब पुराने विचार की महिलाएं हैं। हम नये विचार वाली महिलाओं का अलग मंच बनेगा। इन खूसट महिलाओं के बीच हमें बैठने में शर्म आती है। ये आज भी राजनीति में पुराने फैशन ही चलाना चाहती है। इन्हें नहीं मालूम कि जमाना कितना बदल गया है। मैं स्लीव-लेस बहनों से निवेदन करती हूं कि वे मेरा साथ दें। हम राजनीति को पुराने ढर्रे पर नहीं चलने देंगे। अब इस देश की महिलाएं काफी गा आगे बढ़ चुकी हैं। इसलिए बहनों, हमें अपना भविष्य इस देश की राजनीति में अपने ढंग से तय करना है, राजनीति में अपना अलग फैशन बनाना है, देश की महिलाओं को आगे बढ़ाना है। बोलो- भारतमाता की...'
जै के नारों के साथ सभी स्लीव-लेस महिलाएं बाहर आ गई। बैठक में अब केवल थुल-थुल देह वाली महिला के साथ केवल तीन महिलाएं और बची थीं जो राजनीति में नये फैशन पर अभी भी गंभीर थीं। शायद वे तीनों महिलाएं विधान सभा चुनाव लडऩा चाहती थीं और उन्होंने तय किया कि मुहल्ले की महिलाओं को नये सिरे से संगठित किया जाए और राजनीति में महिलाओं को आगे लाया जाए।